भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन के पूर्व वैज्ञानिक नांबी नारायणन देश की सर्वोच्च अदालत में कानूनी लड़ाई जीत गए हैं ।
जी हाँ ! यह वही लड़ाई है ,जिसने उनकी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया था। आधार हीन जांच के लिए केरल पुलिस को दंडित किए जाने के निर्देश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ,ए एम खानविलकर तथा डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को लगभग 75 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश भी दिया है।
राज्य को अपने प्रतिनिधिक दायित्वों के निर्वहन के लिए यह मुआवजा देने का निर्देश दिया गया हैं। यहां आपको बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट अनुसार प्रतिनिधिक दायित्वों से तात्पर्य है की” यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है, जहां किसी को किसी अन्य व्यक्ति के कार्यों और चूक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि “इस मामले में इन्हें गलत तरीके से आरोपित किया गया था । जिससे इनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची। इस मामले में ऐसे कोई भी कारक नहीं हैं ,जिससे कि इन्हें आरोपी बनाया जा सके। राज्य सरकार इन्हें मुआवजा दे तथा मुआवजे की रकम दोषी अफसरों से वसूली जाए ।
न्यायालय ने यह भी कहाकि कि यह एक संगीन मामला हैं ,क्योंकि यह किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा को नष्ट करने का मसला है ,साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि “इस मामले की लचर और एक पक्षीय जांच करने वाले अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर आपराधिक जांच शुरू करी जाए।”
आपको बताते चलें कि इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को जीवन जीने का मूलभूत अधिकार माना है । मूलभूत अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आते हैं ।
नांबी नारायणन यह केस 1998 से लड़ रहे हैं, जब न्यायालय ने यह फैसला सुनाया तब वह पीठ के समक्ष मौजूद थे । 76 वर्षीय नांबी नारायणन 1994 में गिरफ्तार किए गए थे। केरल पुलिस ने उन्हें सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था ।उन पर आरोप था कि उन्होंने संवेदनशील जानकारी शत्रु देशों के साथ साझा करी है, बाद में सीबीआई ने अपनी जांच में इस जानकारी को झूठा पाया था ।
नांबी नारायणन ने न्यायालय को यह बताया कि खुद सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में मजिस्ट्रेट को जो जांच सौंपी थी उसमें सीबीआई ने यह स्वीकार किया था कि केरल पुलिस द्वारा कराई गई जांच संदिग्ध थी।
पूर्व वैज्ञानिक ने सर्वोच्च अदालत में यह अपील केरल हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ करी थी, जिसमें केरल हाईकोर्ट ने जांच में शामिल केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक और दो पुलिस कप्तानों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करने की जरूरत को महत्वहीन बताया था।
1998 से लेकर 2018 तक नांबी नारायणन कितनी पीड़ा और अपमान से गुजरे होंगे, यह केवल वही महसूस कर सकते हैं।
वह समय लौटकर तो नहीं आ सकता है । खुशी की बात यह है ,कि उन्हें न्याय मिल गया। यहां पर एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है, कि हमारे देश में न्याय मिलता तो है ,पर बहुत धीमे मिलता है।
सालों पहले गालिब के शेर भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए मौजूं हैं कि
हमने माना तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
खाक हो जाएंगे तुमको खबर होने तक